तकनीकी शिक्षा, अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता !

सार

हमारा   देश   प्रारम्भ   से   ही   शिक्षा   के   क्षेत्र   में   अग्रणीय   रहा   है।   हमारे   वेद ,  पुराणों   में   इस   के   प्रमाण   उपलब्ध   है।   प्राचीन   काल   में   भले   ही   बडे - बडे   विज्ञान   भवन      रहे   हो   तकनीकी   संस्थानों   की   श्रंखला   दिखाई      देती   हो ,  लेकिन   गुरूकुलों   में   दी   जाने   वाली   शिक्षा   विद्यार्थियों   के   चहुंमुखी   विकास   में   सहायक   थीं।   सृष्टि   के   अदिकाल   में   जिस   दिन   मनु   पुत्र   के   जीवन   मे   चेतना   आई   उसी   दिन   सहित्य   संरचना   प्रारम्भ   हो   गई   थी।   शिक्षा   वैयक्तिक   समाजिक   और   राष्ट्रीय   प्रगति   के   लिए   नहीं   अपितु   सभ्यता   और   संस्कृति   के   विकास   के   लिए   भी   अनिवार्य   है।   भारतीयों   ने   शिक्षा   के   इस   गहन   महत्व   को   समझा   और   उसे   लागू   के   प्रयास   किए।   परिणामः   उस   काल   में   शिक्षा   की   सुन्दर   और   श्रेष्ठ   व्यवस्था   हुई।   भारत   की   प्रचीन   शिक्षा   प्रणाली   से   सैकडों   वर्षों   तक   भारत   का   विशाल   वैदिक   साहित्य   ही   सुरक्षित   नहीं   रहा   अपितु   प्रत्येक   युग   मे   दर्शन ,  न्याय ,  गणित ,  ज्योतिष ,  वैधक ,  रसायन   आदि   विविध   शास्त्रों   और   ज्ञान   के   क्षेत्रों   में   ऐसे   मौलक   विचारक   और   विद्वान   उत्पन्न   हुए   जिनसे   हमारे   देश   का   मस्तक   आज   भी   यश   आज   से   उन्नत   है।    उपर्युक्त   अध्ययन   का   उद्देश्य   गुरू   की   महिमा   का   बखान   करना   नहीं   है ;  बल्कि   गुरु   के   उस   स्वरूप   को   स्थापित   करना   है ,  जिससे   शिक्षा   की   गुणवत्ता   का   ज्ञान   हो   सके।

प्रस्तावना

वास्तविक   रूप   में   शिक्षा   एक   ऐसी   प्रक्रिया   है   जिसकी   सहायता   से   बालक   की   जन्मजात   शक्तियों   या   योग्यताओं   का   स्वाभाविक   विकास   इस   प्रकार   होता   है   कि   उनके   द्वारा      केवल   उसकी   वैयक्तिकता   का   ही   विकास   हो ,  अपितु   वह   अपना      समाज   का   कल्याण   करते   हुए   अपने   भौतिक ,  सामाजिक   तथा   आध्यात्मिक   वातावरण   के   साथ   समायोजन   स्थापित   कर   सके।   अतः   शिक्षा   व्यक्ति   का   सर्वांगीण   विकास   करती   हुई   उसे   सामाजिक   विकास   की   ओर   उन्मुख   करती   है।   व्यक्ति   का   सर्वांगीण   विकास   करना   ही   शिक्षा   का   प्रमुख   उद्देश्य   है।   शिक्षा   प्राप्ति   का   औपचारिक   अभिकरण   विद्यालय   है   और   विद्यालय   का   परिवेश   बालक   के   सर्वांगीण   विकास   में   प्रमुख   भूमिका   निभाता   है।   विद्यालयी   शिक्षा   बालक   की   उच्च   शैक्षिक   उपलब्धि   तथा   उसके   भविष्य   का   निर्धारण   करती   है ,  परन्तु   सभी   बालकों   की   शैक्षिक   निष्पति   उच्च   हो ,  यह   असम्भव   है।

शिक्षा   की   गुणवत्ता      प्रखरता   भी   तभी   बनी   रह   सकती   है   जब   वह   समय   सापेक्ष      समाज   के   अनुकूल   हो ,  अर्थात्   शिक्षा   के   उद्देश्य   देश   तथा   काल   के   अनुसार   परिवर्तित   होते   रहते   हैं।   भारतीय   माध्यमिक   शिक्षा   आयोग   ने   शिक्षा   के   उद्देश्यों   के   सम्बन्ध   में   लिखा   है   कि  -  शिक्षा   व्यवस्था   को   आदतों ,  अभिरूचियों ,  चारित्रिक   गुणों   के   विकास   में   आवश्यक   योगदान   करना   चाहिए ,  जिससे   नागरिक   प्रजातन्त्रीय   नागरिकता   के   उत्तरदायित्वों   का   निवाह   कर   सके   तथा   उन   सभी   विनाशात्मक   प्रवृत्तियों   का   विरोध   कर   सके   जो   व्यापक   राष्ट्रीय   तथा   धर्मनिरपेक्ष   द्रष्टिकोण   के   विकास   में   बाधक   होते   हैं।   प्राचीन   समय   में   एथेन्स   ने   शिक्षा   का   प्रमुख   उद्देश्य   अपने   देशवासियों   का   राजनैतिक ,  बौद्धिक ,  नैतिक   तथा   सौन्दर्यात्मक   विकास   करना   बताया   था।   तत्कालीन   शिक्षा   इसी   उद्देश्य   की   पूर्ति   हेतु   रची   गई   थी।

अध्ययन   के   उद्देश्य

1. विद्यालयों   में   सूचना   एवं   सप्रेषण   तकनीकी   के   उपकरणों   का   अध्ययन

2. शिक्षण   के   साथ - साथ   मल्टीमीडिया   का   उपयोगका   अध्ययन

कम्प्यूटर   आधारित   शिक्षण   व्यवस्था   की   ऐतिहासिक   पृष्ठभूमि 

 1920   में    सिडनी   एल   प्रेंसी  ने   ऐसी   मशीनों   का   विकास   किया   जिनका   प्रयोग   परीक्षण   के   लिए   किया   गया। 
 बी . एफ .  स्कीनर   ने   1954   में   शिक्षण   में   तकनीकी   के   प्रयोग   की   उपादेयता   पर   बल   दिया   था ,  तदुपरान्त   शिक्षण   में   मशीनों   का   प्रयोग      अभिक्रमित   पाठों   का   प्रयोग   किया   जाने   लगा।   इन   शिक्षण   मशीनों   के   प्रयोग   से   अधिगम   अधिक   दु्रतगामी   एवं   पुनर्बलन   अधिक   प्रभावी   बन   सका। 
 1960   मे   रॉबर्ट   मेगर   ने   अभिक्रमित   अनुदेशन   की   शिक्षण   विधि   को   श्रेष्ठ   बनाया।   1962   में    स्लेक  ने   गणितीय   सिद्धान्तों   पर   आधारित   अनुदेशन   सामग्री   का   निर्माण   किया।   1966   में    रोथकार्फ  ने   प्रवाह   चार्ट  ( Flow Chart )   का   विकास   किया।   भारत   में   अभिक्रमित   अनुदेशन   पर   कार्य   1963   में   प्रारम्भ   हो   गया   था   लेकिन   अनुदेशन   सामग्री   का   निर्माण   1980   के   बाद   NCERT   की   देखरेंख   में   संभव   हो   पाया   है।

1986   में   नई   शिक्षा   नीति   लागू   किए   जाने   के   पश्चात्   हमारे   देश   में   शिक्षण   अधिगम   क्रियाओं   के   संचालन   में   कम्प्यूटरों   के   प्रयोग   का   प्रचलन   विधिवत्   आरम्भ   हो   चुका   है।   इसमें   पूर्व   स्वतंत्रता   प्राप्ति   कें   बाद   कोठारी   शिक्षा   आयोग  ( 1964-66)  द्वारा   अध्यापकों   को   शैक्षिक   नवाचारों   से   परिचय   करवाने   का   समर्थन   था।    नई   शिक्षा   नीति ’ 1986   में   घिसी   हुई   डिग्री   और   डिप्लोमा   की   बैसाखी   छोड़कर   छात्रों   में   वास्तविक   ज्ञान   का   संचार   करने   पर   बल   दिया   गया।   हर   बालक - बालिका   में   तकनीकी   कुशलता   की   या   ेग्यता   होनी   चाहिए   इसलिए   यह   प्रारूप   प्रस्तुत   किया   गया   कि   प्रत्येक   जिले   में   डाइट   की   स्थापना   की   जाए   जो   अध्यापकों   को   कम्प्यूटर   के   उपयोग   के   लिए   प्रेरित   करें।   राज्य   में   तकनीकी   विभाग   बच्चों   के   लिए   शैक्षिक   सॉफ्टवेयर   तैयार   करें।   नई   शिक्षा   नीति   का   यह   प्रारूप   1988   की   संसद   में   पास   हो   गया   और   13,000   स्कूलों   में   5-8   कम्प्यूटर   लगाए   गए।   7 वीं   योजना   में   विचार   किया   कि   1991   तक   सभी   हायर   सैकण्डरी   स्कूलों   में   कम्प्यूटर   साक्षरता   प्रोग्राम   शुरु   किया   जाए      1995   तक   सैकण्डरी   स्कूलों   में   तथा   उसके   पश्चात्   प्राथमिक      उच्च   प्राथमिक   स्कूल   में   कम्प्यूटर   साक्षरता   कार्यक्रम   प्रारम्भ   किया   जाये।   यह   प्रावधान   स्कूली   शिक्षा   के   लिए   थे।

शिक्षा   तकनीकी

भारत   में   आर्थिक   कठिनाइयों   के   होते   हुए   भी   यह   स्पष्ट   है   कि   आर्थिक   एवं   उत्पादन   क्षेत्रों   में   धीरे - धीरे   तकनीकी   का   प्रवेश   हो   चुका   है      इसका   प्रयोग   निरन्तर   बढ़ता   जा   रहा   है।   शिक्षा   के   क्षेत्र   में   भी   इस   का   वांछित   है   तथा   शिक्षा   में   तकनीकी   का   प्रयोग   होने   लगा   है      इस   दिशा   में   अनुसंधान   भी   होने   लगे   हैं।   शिक्षा   के   दो - प्रमुख   क्षेत्र   अधिगम   एवं   शिक्षण   है।   इन   दोनों   प्रक्रियाओं   के   माध्यम   से   अधिगमकर्ता   अपने   उद्देश्यों   को   निरन्तर   पुनर्बलन   नहीं   दे   सकता   है   जो   एक   आदर्श   अधिगम   स्तर   के   लिए   आवश्यक   है   और   इसलिए   शिक्षण   को   मशीन   एवं   अन्य   शिक्षण   सहायक   सामग्री   की   आवश्यकता   पड़ती   है।   सन्   1960   से   पूर्व    शैक्षिक   तकनीकी  को   दश्य - श्रव्य   सामग्री   तथा   कक्षा - शिक्षण   से   सम्बन्धित   अधिकतर   शिक्षण   सामग्री   से   सम्बन्धित   किया   जाता   था।   अधिकतर   शिक्षकों   एवं   शिक्षक - प्रशिक्षकों   के   लिए   शैक्षिक   तकनीकी   का   अर्थ   शिक्षण   में   प्रयुक्त   सहायक   सामग्री   से   ही   होता   था।   उन्नीसवीं   शताब्दी   के   प्रारम्भ   में   भी   शैक्षिक   खिलौने   आदि   का   प्रयोग   प्राथमिक   कक्षाओं   में   होता   था।   सन्   1950   के   दशक   में   स्टैनले   एडवर्ड ,  बी .  एफ ,  स्किनर   आदि   अभिक्रमित   अध्ययन   पद्धति   का   विकास   किया   तथा   उसी   के   आधार   पर   कुछ   उत्कृष्ट   पुस्तको   का   निर्माण   भी   हुआ।   कार्डों   तथा   बोर्डों   को   प्रस्तुत   कर   शिक्षण   के   यंत्रीकरण   करने   का   प्रयास   किया   गया।   सन्   1970   में   सर्वप्रथम   इंग्लैंण्ड   के   शिक्षाविद्   का   प्रयोग   किया   और   धीरे - धीरे   अन्य   देशों      भारत   में   महत्व   का   बिन्दु   बन   गया।   यह   शिक्षा   के    एक   विषय  के   रूप   में   निहित   किया   गया      इस   क्षेत्र   में   अध्ययन      विकास   के   लिए   प्रयास   प्रारम्भ   हो   गया।   इस   दिशा   में   कार्य   करते   हुए   शैक्षिक   अनुसंधानएवं   शैक्षिक   तकनीकी   केन्द्र   के   नाम   से   पृथक   विभाग   खोला ,  जो   शैक्षिक   तकनीकी   का   विकास   एवं   उनके   द्वारा   विभिन्न   शैक्षिक   समस्याओं   का   निदान   करने   की   सम्भावना   एवं   शोध   की   दिशा   में   कार्य   करने   का   प्रयास   करता   है।   शैक्षिक   तकनीकी   के   विकास   के   परिणाम   स्वरूप   ही   अन्य   क्षेत्रों   की   भांति   अब   विज्ञान   एवं   मशीनों   का   प्रयोग   शिक्षा   में   होने   लगा   है।   शिक्षण   मशीन ,  रेडियो ,  टेलीविजन ,  टेपरिकांर्डर ,  कम्प्यूटर   एवं   भाषा   प्रयोगशालाओं   का   प्रयोग   अब   शिक्षण   प्रक्रिया   में   अधिकाधिक   किया   जाने   लगा   है।   आज   आकाशवाणी   एवं   दूरदर्शन   के   माध्यम   से   विश्व   में   कहीं   भी   दूर   बैठा   विद्यार्थी ,  प्रभावी   शिक्षक   को   सुनकर   लाभ   उठा   सकता   है   एवं   ज्ञान   में   वृद्धि   कर   सकता   है।   इसके   माध्यम   से   वह   अपने   ज्ञान   को   आधुनिकतम   सीमा   तक   वृद्धि   कर   सकता   है।   शिक्षण   तकनीकी   एवं   व्यवहार   तकनीकी   में   अनेक   शिक्षण   मशीनों - हार्डवेयर   एवं   सांफ्टवेयर   का   प्रयोग   किया   जाने   लगा   है।

शैक्षिक  तकनीकी   की   आवश्यकता 

वर्तमान   युग   को   तकनीकी   युग   कहा   जाता   है।   जैसे - जैसे   शिक्षा   के   क्षेत्र   में   प्रगति   होती   गई ,  शिक्षा   को   अधिकाधिक   वैज्ञानिक   आधार   देने   की   आवश्यकता   अनुभव   होने   लगी   क्योंकि   प्रत्येक   तकनीकी   विकास   के   आधार   शिक्षा   ही   है।   शिक्षा   की   अवधारणा   प्रमुखतया   आधुनिकतम   संकल्पना   के   रूप   में   बालक   का   सर्वांगीण   विकास   है।   यह   शिक्षण   की   अपेक्षा   अधिगम   पर   बल   देती   है   तथा   बालक   के   व्यवहार   में   अपेक्षित   अनुकूलतम   व्यवहारगत   परिवर्तन   इस   प्रकार   से   करती   है   कि   बालक   की   अन्तनिर्हित   क्षमताओं   को   बहुमुखी   कर   सामाजिक   वातावरण   में   विकसित   कर   सके।   बालकों   के   सर्वांगीण   विकास   के   लिए   २श्य   और   श्रव्य   सामग्री   के   माध्यम   से   अपेक्षित   व्यवहारगत   परिवर्तन   उद्देश्यानुसार   लाने   का   प्रयास   किया   जाता   है।   अतः   ज्ञान   के   संचय ,  प्रसार   एवं   विकास   हेतु   आधुनिकतम   तकनीकियों   की   आवश्यकता   अनुभव   होने   लगी   

तकनीकी   शिक्षा

ऑक्सफोर्ड   डिक्शनरी   ने   तकनीकी   शिक्षा   को   लागू   विज्ञान   और   व्यावहारिक   विषयों   में   दी   गई   शिक्षा   के   रूप   में   परिभाषित   किया   है।   तकनीकी   शब्द   को   उस   नौकरी   के   रूप   में   परिभाषित   किया   गया   है   जिसमें   मशीनों   के   संचालन   से   संबंधित   लागू   और   औद्योगिक   विज्ञान   शामिल   हैं।   शोधकर्ता   के   अनुसार   तकनीकी   शिक्षा   शब्द   का   अर्थ   यांत्रिक   कलाओं   और   व्यावहारिक   विज्ञान   से   संबंधित   एक   अधिनियम   है।   वर्तमान   जांच   में   तकनीकी   शिक्षा   का   अर्थ   है   कि   एआईसीटीई   के   तत्वावधान   में   शिक्षा   प्रदान   की   जा   रही   है   लेकिन   प्रबंधन   और    शिक्षा   को   वर्तमान   अध्ययन   में   शामिल   नहीं   किया   गया   है।   इसके   अलावा ,  वर्तमान   अध्ययन   में   किए   गए   प्रयासों   को   निम्नलिखित   शाखाओं   में   स्नातक   स्तर   की   तकनीकी   शिक्षा   अर्थात   बीई   और   बी . टेक   तक   सीमित   कर   दिया   गया   है  -
1.  नागरिक
2.  कंम्प्यूटर   विज्ञान
3.  विद्युत   और   संचार
4.  विद्युत   और   इलेक्ट्रोनिक्स
5.  विद्युतीय
6.  इलेक्ट्रोनिक्स 
7.  सूचना   प्रौद्योगिकी 
8.  यांत्रिक 
9.  उत्पदान   और   उद्योग 

10.  इलेक्ट्रोनिक्स   और   संचार 

तकनीकी   शिक्षा   का   महत्व

ज्ञान   आधारित   अर्थव्यवस्था   के   वर्तमान   युग   में   देश   की   सामाजिक   आर्थिक   विकास   में   तकनीकी   शिक्षा   महत्वपूर्ण   भूमिका   निभाती   है।   यह   सामान्य   रूप   से   देश   के   मानव   संसाधन   विकास   में   एक   महत्वपूर्ण   भूमिका   निभाता   है।   यह   विभिन्न   प्रकार   की   जनशक्ति   प्रदान   करता   है।   यह   देश   की   आधारभूत   संरचना ,  औद्योगिक   और   आर्थिक   विकास   के   लिए   आवश्यक   है।   यह   छात्रों   को   व्यावहारिक   शिक्षा   प्रदान   करता   है   ताकि   वे   अपने   व्यक्तित्व   को   ऐसे   स्तर   तक   बढ़ा   सकें   कि   वे      केवल   अपने   देश   के   विकास   मे   सहयोग   प्रदान   करे   बल्कि   दुनिया   के   विकास   मे   अपनी   सक्रिय   भूमिका   निभाने   मे   सक्षम   हो।   तकनीकी   शिक्षा   का   उद्देश्य   एक   पेशेवर   उत्पादक   जीवन   के   लिए   छात्रों   को   तैयार   करना   है।   तकनीकी   शिक्षा   एक   अनिवार्य   निवेश   है   और   राष्ट्रीय   विकास   के   लिए   एक   महत्त्वपूर्ण   इनपुट   है ,  इसे   अब   सामान्य   शिक्षा   के   एक   भाग   के   रूप   में   नहीं   माना   जाना   चाहिए।   व्यावसायिक   शिक्षा   के   अन्य   क्षेत्रों   जैसे   कि   स्वास्थ्य   और    शि   के   रूप   में ,  तकनीकी   शिक्षा   को   सामान्य   शिक्षा   से   अलग   से   प्रबंधित ,  और   प्रशासित   किया   जाना   चाहिए।   पूरी   दुनिया   में   तकनीकी   शिक्षा   की   भूमिका   और   महत्व   को   गहराई   से   समझना   है।   भारतीय   संदर्भ   में ,  भारत   की   वैज्ञानिक   नीति   संकल्प  ( 1958)  में   तकनीकी   शिक्षा   की   भूमिका   को   स्पष्ट   रूप   से   स्पष्ट   किया   गया   है।   यह   स्पष्ट   रूप   से   कहता   है   कि   देश   की   संपत्ति   और   समृद्धि   औद्योगीकरण   के   माध्यम   से   अपने   मानव   और   भौतिक   संसाधनों   के   प्रभावी   उपयोग   पर   निर्भर   करती   है।   उद्योग   से   व्यक्ति   के   लिए   रोजगार   के   अवसरों   की   संभावनाऐं   खुलती   हैं।   भारत   की   मानव   शक्ति   आधुनिक   दुनिया   में   एक   परिसंपत्ति   बन   सकता   है।

सम्बन्धित   साहित्य 

भटनागर   एच . ( 1983)  ने    किशोर   बालिकाओं   के   तकनीकी   शिक्षा   का   चयन   और   उनकी   रूचियों   को   प्रभावित   करने   वाले   कारकों   का   अध्ययन  किया।   निष्कर्ष  -
1. किशोर   बालिकाओं   के   इंजीनियरिंग   चयन   को   तकनीकी   शिक्षा   में   रूचि   सर्वाधिक   प्रभावित   करती   है। 
2. उच्च   आर्थिक   स्तर   एवं   निम्न   आर्थिक   स्तर   से   सम्बन्धित   बालिकाओं   की   तकनीकी   शिक्षा   में   रूचि   में   अत्यधिक   अन्तर   पाया   गया। 
3. शहरों   एवं   छोटे   कस्बों   की   लड़कियों   की   तकनीकी   शिक्षा   में   रूचि   में   अधिक   अन्तर   नहीं   पाया   गया। 
अतः   बालिकाओं   की   तकनीकी   शिक्षा   में   रूचियों   में   काफी   विविधता   पाई   गई।   साहेब   एस .  जे . ( 1980) [ 4 ]   ने   ’’ शैक्षिक   एवं   तकनीकी   शिक्षा   क्षेत्रों   के   विद्यार्थियों   की   रूचियों   का   अध्ययन   ’’  किया।
निष्कर्ष      इन्होंने   अपने   अध्ययन   में   पाया   कि   शैक्षिक   क्षेत्र   के   छात्र   भौतिक   एवं   जैविक   विज्ञान   में   रूचि   रखते   है   जबकि   तकनीकी   क्षेत्र   के   छात्रों   की   रूचि   विज्ञान   गणित   एवं   कम्यूनिकेशन   में   होती   है   साथ   ही   ये   सामाजिक   सेवा ,  खेल      संगीत   में   शैक्षिक   छात्रों   से   बेहतर   होते   है।   तकनीकी   शिक्षा   में   रूचि   सामाजिक - आर्थिक   स्तर   पर   आश्रित   नहीं   होती   है।
कठेरिया   रेखा  ( 1975)5   ने  छात्रों   की   इंजीनियरिंग   रूचियों      माता - पिता   के   मूल्यों   तथा   पारिवारिक   सम्बन्ध   के   मध्य   सहसम्बन्ध   पर   अध्ययन    किया। 
निष्कर्ष  -  सामान्यतः   छात्रों   ने   इंजीनियरिंग   व्यवसायों   को   प्रथम      कलात्मक   व्यवसायों   को   अन्तिम   वरीयता   दी   है।   छात्र   अधिकतर   माता - पिता   द्वारा   स्वीकृत   रहें   है।   छात्रों   तथा   माता - पिता   दोनों   ने   ही   पारिवारिक   मूल्यों   को   प्रथम   स्थान   दिया   है।   एल .  सिंह  ( 1967)  ने    शहरी   एवं   ग्रामीण   क्षेत्र   के   किशोर   लड़कों   एवं   लड़कियों   की   व्यावसायिक   एवं   शैक्षिक   रूचि   के   प्रतिमानों   का   अध्ययन    किया।
निष्कर्ष -  इस   अध्ययन   के   निम्नलिखित   निष्कर्ष   रहे -
1. किशोरों   की   व्यावसायिक   एवं   शैक्षिक   रूचि   में   मेल   एवं   अनुरूपता   नहीं   थी   तथा   व्यावसायिक   रूचि   प्रत्यक्ष   रूप   से   सम्बन्धित   नहीं   थी। 
2. शहरी   एवं   ग्रामीण   क्षेत्र   की   छात्राएँ   समान   रूप   से   वैज्ञानिक ,  वाणिज्यिक   संरचनात्मक   और   कृषि   सम्बन्धी   क्षेत्रों   में   रूचिशील   थी। 
3. ग्रामीण   एवं   शहरी   छात्रों   की   व्यावसायिक   रूचियाँ   साहित्यिक ,  वैज्ञानिक ,  निर्माणात्मक ,  वाणिन्धिक ,  सौन्दर्यात्मक ,  कृषि ,  समाज   सेवा   तथा   गृह   सम्बन्धी   व्यवसायों   में   सार्थक   रूप   से   भिन्न   थी।   शहरी   छात्राएँ   वैज्ञानिक   क्षेत्रों   में   तथा   ग्रामीण   छात्राएँ   साहित्यिक   क्षेत्रों   में   ज्यादा   रूचिशील   थी। 
गहलोत   राजेश  ( 1988) [ 7 ]   ने    जोधपुर   शहर   के   माध्यमिक   स्तर   के   विद्यालयों   के   विद्यार्थियों   की   तकनीकी   शिक्षा   क्षेत्रोंमेंरूचियों   एवं   अभिभावकों   की   उनके   सम्बन्ध   में   व्यावसायिक   आकांक्षाओं   के   सम्बन्धों   का   अध्ययन    किया।
निष्कर्ष  -  छात्रों   की   तकनीकी   शिक्षा   क्षेत्रोंमें   रूचि   तथा   उनके   माता - पिता   की   आकांक्षा   में   कोई   सम्बन्ध   नहीं   पाया   गया   किन्तु   छात्राओं   के   विषय   में   ऐसा   नहीं   पाया   गया।   प्रकाश   लता  ( 1988) [ 8 ]   ने    पारिवारिक   पृष्ठभूमि   और   करियर   चयन   के   बीच   सम्बन्ध   का   अध्ययन  करना।
चैहान ,  एवं   कुसुमलता  ( 1985)  ने   राजस्थान   की   डाइट्स   के   शैक्षिक   प्रौद्योगिकी   प्रभाग   की   स्थिति   का   अध्ययन   करते   हूए   इन   संस्थानों   के   संदर्भ   में   यह   निष्कर्ष   निकाला   कि   इनमें   टीवी ,  वी . सी . आर ,   . एम . पी ,  एल . सी . डी . ,  प्रोजेक्टर   चालू   हालत   में   हैं।   वीडियो   कैसेट ,  ऑडियों   कैसेट   उपलब्ध   हैं।   फ्लापी ,  ट्रांसपेरेन्सी ,  स्लाइड्स   आदि   आधी   डाइट्स   में   भी   उपलब्ध   नहीं   हैं।   इन्होंने   शैक्षिक   तकनीकी   के   अधिक   उपयोग   हेतु   कुछ   सुझाव   भी   दिए   यथा   शैक्षिक   तकनीकी   प्रभाग   के   लिए   डिस्पले   कम   स्टोर ,  वातानुकूलित   कक्ष      फर्नीचर   उपलब्ध   कराया   जाए।   शिक्षकों   को   ऑडियो ,  विडियों ,   . एच . पी .  तथा   एल . सी . डी .  के   प्रयोग   से   अभिनव   प्रशिक्षण   के   दौरान   आदर्श   पाठ   देने   के   लिए   प्रोत्साहित   किया   जाए।
सक्सेना   एवं   अन्य  ( 2000)  ने   माध्यमिक   शिक्षा   में   कम्प्यूटर   का   उपयोग   जानने   के   लिए   उत्तर   प्रदेश   राज्य   के   माध्यमिक   शिक्षा   कार्यक्रम   में   कम्प्यूटर   का   कितना   तथा   किस   प्रकार   प्रयोग   किया   जा   रहा   है   इसका   अध्ययन   किया।   सरकारी   तथा   प्राइवेट   स्कूलों   को   कम्प्यूटर   को   लेकर   कैसी   सुविधाएँ   हैं   उनमें   क्या   अन्तर   हैं ?  आदि   प्रश्नों   के   उत्तर   को   जानने   के   लिए   उत्तर   प्रदेश   राज्य   के   अन्तर्गत   आने   वाले   आगरा ,  इलाहाबाद ,  लखनऊ ,  कानपुर ,  वाराणसी ,  शहरों   का   सर्वे   किया।   सर्वे   के   उपरान्त   पाया   गया   कि   स्कूलों   के   लिए   कम्प्यूटर   शिक्षा   पर्याप्त   नहीं   है।   हिन्दी   माध्यमों   वाले   स्कूलों   में   कम्प्यूटर   की   असुविधा   है।   वहीं   दूसरी   ओर   प्राइवेट ,  कान्वेन्ट   स्कूलों   में   कम्प्यूटर   पाठ्यक्रम   का   हिस्सा   है   पर   कम्प्यूटर   अभ्यास   के   लिए   पर्याप्त   समय ,  उपयुक्त   पर्याप्त   कक्ष   विषय   के   ज्ञाता   तथा   अन्य   सुविधाएँ   पर्याप्त   नहीं   है।   माध्यमिक   शिक्षा   में   कम्प्यूटर   शिक्षा   की   श्रेष्ठ   व्यवस्था   की   आवश्यकता   है।
राजस्थान   पत्रिका  ( 2007)  कम्प्यूटर   शिक्षा   प्रसार   हेतु   राजस्थान   सरकार   ने   1634   विद्यालयों   में   3-3   कम्प्यूटर   स्थापित   करने   की   घोषणा   की   है।   साथ   ही   राज्य   की   33   डाइटों   में   1-1   कम्प्यूटर   लेब   की   स्थापना   करने   की   घोषणा   भी   की   गई   है।
सिंह ,  पी .  वीरेन्द्र   तथा   संदीप   के .  शर्मा  ( 2008) ‘ बेसिक   फेसिलिटिज   इनएलीमेन्ट्री   लेवल   स्कूल   इन   सरल   इण्डिया  यह   शोध   कार्य   में   आरम्भिक   स्तर   परग्रामीण   विद्यालयों   की   मूलभूत   सुविधाओं   पर   आधारित   था।   इस   शोध   कार्य   कोआरम्भिक   स्तर   पर   ग्रामीण   मूलभूत   सुविधाओं   की   उपलब्धता   पाँचवे ,  छटवे   तथा   सातवें   शैक्षिक   सर्वे   के   आधार   पर   अप्रमाणिक   सांख्यिकी   प्रारूप   पर   आधारित   था।इस   शोध   कार्य   के   निष्कर्ष   के   फलस्वरूप   प्राथमिक   तथा   उच्च   प्राथमिक   स्तर   केग्रामीण   विद्यालयों   में   मूलभूत   सुविधाओं   जैसे - शौचालय ,  पुस्तकालय ,  फर्नीचर ,  खेलसामग्री   तथा   खेल   का   मैदान   उपलब्ध   नहीं   थे   तथा   प्रारम्भिक   तथा   उच्च   प्राथमिकविद्यालयों   में   सुविधाएँ   मानकों   के   अनुसार   नहीं   है।

नथिमुट्टु   एवं   विजयकुमारी  ( 2013)  ने    शिक्षण   तकनीकी   में   आधुनिक   सूचना   एवं   सप्रेषण   तकनीकी   ट्रेन्डस  शीर्षक   लेख   के   अन्तर्गत   बताया   कि   शिक्षण   को   प्रभावी   बनाने   हेतु   सूचना   एवं   सम्प्रेषण   तकनीकी   के   विकास   तथा   शिक्षा   में   इसके   समन्वयन   की   आवश्यकता   है।   तकनीकी   साधन ,  सॉफ्टवेयर   और   ट्रेनिंग   उपलब्ध   करवाने   से   केवल   उद्देश्यों   की   शुरूआत   होती   है   किन्तु   उद्देश्यों   की   पूर्ति   हेतु   सभी   को   निरन्तर      लम्बी   अवधि   तक   तकनीकी   प्रणाली   का   सहयोग   करना   होगा।   इसके   लिए   विद्यार्थी   शिक्षकों   को   भी   नेतृत्व   प्रदान   किया   जाना   चाहिए   ताकि   वे   यह   निर्धारित   कर   सके।   शिक्षकों   को   नवीन   कौशलों   और   क्षमताओं   के   विषय   में   समय - समय   पर   अवगत   करवाना   चाहिए   ताकि   वे   नवीन   तकनीकी   का   आवश्यकतानुसार   उपयोग   कर   सके ,  क्योंकि   विद्यार्थियों   के   अधिगम   हेतु   शिक्षकों   का   अनुदेशन   बहुत   महत्वपूर्ण   स्थान   रखता   है।   लोगों   को   सूचना   एवं   सम्प्रेषण   तकनीकी   के   बारे   में   शिक्षित   करके   उनका   पुराना   दृष्टिकोण   बदलकर   उन्हें   जागरूक   करना   अति   आवश्यक   हैं।   इस   हेतु   सरकार   का   अन्तर्राष्ट्रीय   स्तर   पर   निरन्तर   प्रयासरत   रहना   जरूरी   है   ताकि   इस   दिशा   में   नए - नए   नियमों   के   आधार   पर   सकारात्मक   प्रभाव   के   लिए   निर्धारित   कार्यों   को   क्रियान्वित   किया   जा   सके।

निष्कर्ष -

1. निम्न   पारिवारिक   पृष्ठभूमि   के   विद्यार्थी   कुछ   सीमा   तक   अपने   परिवार   की   आर्थिक   स्थिति   एवं   आकार   को   प्रायःगत   रखते   हुए   करियर   का   चयन   करते   है ,  जबकि   उच्च   पारिवारिक   पृष्ठभूमि   के   सम्बन्ध   में   यह   स्थिति   प्रतिकूल   रहीं। 
2. मध्यम   पारिवारिक   पृष्ठभूमि   के   विद्यार्थियों   द्वारा   करियर   चयन   अपनी   योग्यता ,  रूचि      क्षमता   के   अनुसार   किया   जाता   है। 
श्रीवास्तव   श्याम   प्रकाश  ( 2010)  ने    बांदा   जिले   के   ग्रामीण   एवं   नगरीय   छात्र - छात्राओं   की   रूचियों   का   तुलनात्मक   अध्ययन  किया   हैं। 
व्यावयायिकरूचि   के   तुलनात्मक   अध्ययन   से   स्पष्ट   होता   है   कि   गाँवों   के   छात्रों   की   अपेक्षा   नगर   के   छात्रों   में   रूचि   अधिक   होती   है।   जबकि   ग्रामीण   छात्राओं   की   अपेक्षा   नगर   की   छात्राओं   में   व्यावसायिक   रूचि   में   भिन्नता   पाई   गई।   जबकि   ग्रामीण   छात्र - छात्राओं   ने   सिलाई ,  शिल्प ,  कलाडॉक्टरी ,  अध्यापन   आदि   व्यवसायों   में   अधिक   रूचि   व्यक्त   की   है   एवं   नगर   के   छात्र - छात्राओं   ने   डॉक्टरी ,  इंजीनियरिंग ,  प्रशासनिक ,  अध्यापन   आदि   व्यवसायों   पर   अधिक   रूचि   व्यक्त   की   है।
दीक्षित   राघवेन्द्र  ( 2014)  ने   इस   शोध   कार्य   में   माध्यमिक   स्तर   के   छात्र   एवं   छात्राओं   में   तकनीकी   शिक्षा   क्षेत्रोंमेंरूचियों   किस   रूप   में   पाई   जाती   है।   तथा   उनकी   मात्रा   या   अनुपात   में   कितना   अन्तर   हैं ,  यह   ज्ञात   किया   है।   माध्यमिक   स्तर   के   छात्र   छात्राओं   की   तकनीकी   शिक्षा   क्षेत्रों   में   रूचियों   में   सार्थक   अन्तर   नहीं   है।   दोनो   रूचियां   लगभग   समान   है।   साथ   ही   छात्राएं   प्रत्येक   तकनीकी   शिक्षा   क्षेत्रोंमें   प्रवेश   करना   चाहती   हैं।   फिर   भी   कलात्मक   सामाजिक   एवं   गृह   कार्य   सम्बन्धी   क्षेत्रों   में   उनकी   रूचि   अधिक   है।
चक्रवर्ती ,  जोतिया  ( 2015)  चार्ज   ऑफ़      यंग   इन्टरनेट   ब्रिगेड ,  टाइम्स   ऑफ़   इण्डिया   में   डिजिटल   शिक्षा   के   युग   में ,  बच्चे   इन्टरनेट   का   उपयोग   करने   में   अपने   अभिभावकों   को   पीछे   छोड़   चुके   हैं।   शोध   एजेन्सी   IMRB   तथा      इन्टरनेट   एण्डमोबाइल   एसोशिएशन   ऑफ़   इण्डिया  ( IMAI )  के   ताजा   सर्वे   के   अनुसार   लगभग   2.2   मिलियन   विद्यालय   जाने   वाले   बच्चे   जिनकी   उम्र   8   से   14   वर्ष   के   मध्य   है  ( अर्थात   भारत   के   बच्चों   की   जनसंख्या   का   15   प्रतिशत )  इन्टरनेट   सर्फिंग   करते   है।
कम्प्यूटर   न्यूज  ( 2015)  के   अनुसार   मौजूदा   समय   में   इन्टरनेट   हर   किसी   की   जरूरत   बन   गया   है ,  चाहे   वे   शोधार्थी   हो   या   कोई   अन्य   पेशेवर।   इसमें   वे   सभी   तथ्य   और   संसाधन   मौजूद   है   जिसे   सामान्य   तरीके   से   ढूँढ   पाना   मुश्किल   हैं   क्योंकि   इन्टरनेट   ने   समूचे   विश्व   को   एक   क्लिक   में   कैद   कर   दिया   है।
चिनिवर ,  प्रभा   एस  ( 2012),  कम्प्यूटर   आधारित   अनुदेशन  ( CAI )  के   माध्यम   सेअंग्रेजी   व्याकरण   में   विद्यार्थियों   की   उपलब्धि   का   अध्ययन।   अध्ययनकर्ताओं   ने   कम्प्यूटर   आधारित   अनुदेशन   CAI   को   ध्यान   में   रखतेहुए   कक्षा   8 वीं   कक्षा   के   अंग्रेजी   व्याकरण   के   विद्यार्थियों   के   लिए   एक   नवीन   शिक्षण   तकनीकी   आधारित   प्रोग्राम   तैयार   किया।   प्रस्तुत   अध्ययन   एक   प्रयोगात्मक   शोध   हैजिसमें   मानक   चर   है।   अंग्रेजी   व्याकरण   के   प्रति   अभिवृत्ति      अंग्रेजी   व्याकरण   में   उपलब्धि।   यह   शोध   अध्ययन   इस   बात   की   ओर   ईशारा   करता   है   कि   CAI  विद्यार्थियों   के   प्रदर्शन   को   बढ़ा   सकता   है।   इसलिए   इस   अध्ययन   में   CAI   का   विकास   अंग्रेजी   व्याकरण   पढ़ान   के   लिए   किए   जाने   पर   जोर   दिया   गया   है।   अतएव   यह   अध्ययन   वर्तमान   परिप्रेक्ष्य   में   अपनी   महत्वता   एवं   सम्बन्ध   को   दर्शाता   है।
राजस्थान   पत्रिका  ( 2010)  में   प्रकाशित   शीर्षक   लेख    ज्ञान   का   विस्तार   छोटेकस्बों   तक  के   अन्तर्गत   ज्ञान   वेबसाइट   के   ज़रिए   जंगल   में   आग   की   तरह   फैलरहा   है   ओर   बेतहाशा   फैलाव   की   जद   में   वह   छोटे   गाँव   और   कस्बे   में   भी      गए   हैं ,   जिन्हें   हाल   तक   अंधेरे   और   पिछड़ेपन   का   पर्याय   मान   लिया   गया   था।   महानगरों   कीलकदक   जिन्दगी   से   दूर   करवाई   युवाओं   को   पहले   की   बोर्ड ,  क्लिक   और   माउस   केमायने   समझने   में   अच्छी   खासी   मशक्कत   करनी   पड़ती   थी   लेकिन   आज   उन्हीं   युवाओं   ने   कम्प्यूटर   क्रांति   के   सबसे   बड़े   चमत्कार   यानी   इंटरनेट   के   इस्तेमाल   में   सबको   यहाँ   तक   की   महानगरों   के   युवाओं   को   भी   पीछे   छोड़   दिया   है।
सैनी ,  पूजा  ( 2010)  ने   छात्रों   के   लिए   बहुत   कुछ   हैं   इन्टरनेट   पर   शीर्षकले      के   अन्तर्गत   बताया   कि   1989   में   वल्र्ड   वाइड   वेब  ( www )  के   आगमन   के   बाद   इन्टरनेट   के   माध्यम   से   यकायक   इतनी   प्रचुर ,  विविध   एवं   उपयोगी   सामग्री   छात्रों   की   पहुँच   में      गई   है ,  जिनका   प्रयोग   करना   तो   दूर   उनकी   सूची   बनाने   मात्र   में   एकाध   जीवन   लग   जाए।   सूचनाओं   की   इस   क्रांति   ने   जिन   क्षेत्रों   को   सर्वाधिक   प्रभावित   किया   है ,  उनमें   शिक्षा   के   क्षेत्र   का   स्थान   शायद   सबसे   अहम्   हैं।   वर्तमान   में   इन्टरनेट   पर   ज्ञानवर्धन   सामग्री   सिर्फ   विकीपीडिया   तक   ही   सीमित   नहीं   है।
कम्पीटिशन   सक्सेस   रिव्यू  ( 2010)  में   प्रकाशित   लेख   ‘‘ इग्नू   ने   प्रारम्भ   कियाफ्लेक्सी   लर्निंग   प्लेटफॉर्म ’’  के   अन्तर्गत   इंदिरा   गाँधी   नेशनल   ऑपन   यूनिवर्सिटी   ने 19   नवम्बर   2009   को   छात्रों   के   लिए   फ्लेक्सी   लर्निंग   प्लेटफॉर्म   के   रूप   में   एक   प्लेटफॉर्म   दिया   है।   इग्नू   की   वेबसाइट   http://www.ignou.ac.in   पर      ज्ञानकोष   पर   रजिस्ट्रेशन   के   बाद   किसी   भी   पाठ्यक्रम   का   बिना   कोई   शुल्क   दिये   अध्ययन   सामग्री   पढ़   या   डाउनलोड   कर   सकते   है।   अपनी   पसंद   के   अनुरूप   कोर्स   की   तैयारी   करके   परीक्षा   दे   सकते   हैं।   इस   वेबसाइट   में   ऑनलाइन   स्टडी   मैटीरियल   में   कोर्स   से   सम्बन्धित   हर   तरह   की   जानकारी   की   व्यवस्था   रहेगी।   इग्नू   में   सवा   तीन   सौ   सेअधिक   अकादमिक   प्रोग्राम   चलाये   जाते   है   और   पेपरों   की   संख्या   2000   से   अधिक   हैं   इग्नू   के    - ज्ञानकोष   पर   सभी   पाठ्यक्रमों   की   अध्ययन   सामग्री   है।   इग्नू   प्रिन्टेड   रूप   में   जो   अध्ययन   सामग्री   देता   है ,  उसे   ही   वेबसाइट   पर   भी   जारी   किया   गया   है।
बाधीवाल ,  पारीक   एवं   तिवारी  ( 1999)  ने    क्लास   प्रोजेक्ट   योजना   द्वारा   कम्प्यूटर   विद्यालयों   तक  शीर्षक   लेख   के   अन्तर्गत   बताया   कि   कम्प्यूटर   की   सामान्य   जानकारी   प्राप्त   करने   हेतु   एम . एच . आर . डी .  के   तत्वाधान   में   भारत   सरकार   द्वारा   छठी   योजना   के   अन्तिम   वर्ष   1984-1985   के   अन्तर्गत   एक   पायलेट   प्रोजेक्ट   के   रूप   में   यह   प्रोजेक्ट   किया   गया।   इसका   अर्थ    कम्प्यूटर   लिटरेसी   एण्ड   स्टडीज   इन   स्कूल    रहा   है।   यह   प्रोजेक्ट   उच्च   माध्यमिक   कक्षाओं   के   छात्र - छात्राओं   के   लिए   प्रस्तावित   किया   गया।
प्रोजेक्ट   विद्या  ( 1999)  के   अन्तर्गत   इन्दौर   के   मानपुर   क्षेत्र   में   शिक्षा   विभाग   एवं   इन्टेल   के   सहयोग   से   प्रोजेक्ट   विद्या   में   कम्प्यूटर   आधारित   अधिगम   शिक्षण   के   प्रभाव   का   अध्ययन   किया   गया।   अध्ययन   का   उद्देश्य   यह   पता   लगाना   था   कि   भारतीय   विद्यालयों   में   प्रौद्योगिकी   युक्त   शिक्षा   कैसे   लागू   की   जाए   और   शिक्षण   अधिगम   पर   इसका   क्या   प्रभाव   होगा ?  विद्या   प्रोजेक्ट   तीन   चरणों   में   बाँटा   गया ,  जो   निम्न   हैं :-
1. विद्यालय   के   समस्त   शिक्षकों ,  प्रशासनिक   कर्मचारियों   तथा   अधिकारियों   के   लिए   कम्प्यूटर   साक्षरता   कार्यक्रम।
2. अंग्रेजी ,  गणित ,  सामाजिक   विज्ञान ,  विज्ञान   सहित   सभी   विषयों   के   शिक्षकों   के   लिए   कम्प्यूटर   की   सहायता   से   अधिगम   कार्यक्रम।

3. कक्षा   6-12   तक   के   विभिन्न   विषयों   के   कम्प्यूटर   की   सहायता   से   अधिगम   की   प्रौद्योगिकी   तथा   विद्यार्थियों   के   प्रदर्शन   के   मूल्यांकन   का   समन्वयन।

उपसंहार

 शिक्षा   में   तकनीकी  या    शिक्षा   के   लिए   तकनीकी  इन   दोनों   बिन्दुओं   पर   गहन   चर्चा   की   आवश्यकता   महसूस   होती   है।   क्योंकि   जहाँ   एक   ओर   तकनीकी ,  व्यक्ति   की   जटिल   से   जटिल   समस्याओं   के   समाधान   देने   में   सक्षम   है ,  वहीं   दूसरी   ओर   व्यक्ति   को   दिमागी   एवं   शारीरिक   कसरतों   से   बचाते   हुए   अपने   ऊपर   निर्भरता   बढ़ाकर   पंगु   भी   कर   रही   है।   समय   के   साथ   बदलते   एवं   बढ़ते   हुए   तकनीकी   एवं   प्रौद्योगिकी   विकास   ने   मानव   को   पृथ्वी   ही   नहीं   अपितु   अन्तरिक्ष   तक   को   समझने   हेतु   सक्षम   कर   दिया   है।   आज   बच्चों   को   तकनीकी   उपक्रमों   के   साथ   खेलना ,  उनको   समझना   ज्यादा   रुचिपूर्ण   लगता   है   और   इनके   माध्यम   से   वे   बेहतर   तरीके   से   सीखने   के   लिए   तैयार   रहते   हैं।   ऐसे   में   उनके   इस   कौशल   एवं   रुचि   को   देखते   हुए   शिक्षण   हेतु   सही   एवं   उपयुक्त   तकनीकी   का   चयन      उसका   सही   एवं   उपयुक्त   इस्तेमाल ,  उच्च   अधिगम   स्तर   प्राप्त   करने   में   सहायक   हो   सकता   है।   ऐसे   में   जरूरत   है   एक   शिक्षक   का   इस   आवश्यकता   को   समझना      सही   एवं   सटीक   तरीकों   द्वारा   इन   सभी   बातों   को   लागू   करना।   उनकी   खुद   की   कुशलता   एवं   रुचि   एक   बड़ा   सवाल   हो   सकता   है।   परन्तु   समय   के   साथ - साथ   शिक्षण   में      रहे   बदलाव   और   नवाचार   में   खुद   को   ढालना   शिक्षक   के   लिए   अनिवार्य   हो   जाता   है।

सन्दर्भ   ग्रंथ   सूची 

1. लाल ,  रमन   बिहारीः   शिक्षा   के   दार्शनिक   और   सामाजशास्त्रीय   सिद्धांत   रस्तोगी   पब्लिकेशन   मरेठः   पृ .  सं .  9
2. डॉ .   रामपाल   सिंह  -  शिक्षा   एवं   भारतीय   समाज ,  विनोद   पुस्तक   मंदिर ,  आगरा - 2,  द्वितीय   संस्करण - 1984/85   पृं   सं .  4
3. [3]    Bhatnagar, H. 'A Study of accuptional choices of adolescent girls and factors influencing them', Ph.D. Edu. HPU,  1983
4. साहेब   ऐस .  जे . -  शैक्षिक   एवं   व्यावसायिक   शिक्षा   क्षेत्रों   की   अभिवृत्ति ,  व्यवसाय   संतुष्टी ,  समायोजन   और   व्यावसायिक   अभिरुचि   के   मध्य   संबंधों   का   अध्ययन ,  पी . एच .  डी .  दिल्ली   विश्वविद्यालय   1980
5. कठेरिया   रेखा  -  छात्रों   की   व्यावसायिक   रूचियों ,  माता - पिता   के   मूल्यों   तथा   पारिवारिक   सम्बन्ध   के   मूल्यों   तथा   पारिवारिक   सम्बन्ध   के   मध्य   सहसम्बन्ध   का   अध्ययन ,  एम . एड .  लघु   शोध ,  राजस्थान   विश्वविद्यालय , 1975
6. एल .  सिंह  -  पैन्टेर्स   आंफ   एजुकेशनल   एंड   वोकेशनल   इंटरेस्ट   ओफ   अडोलेसेंट्स ,  पी - एच . डी .  थीसिस   इन   साइकोलोजी ,  आगरा ,  यूं .  पी . , 1967
7. गहलोट   राजेश  -  माध्यमिक   स्टारों   के   विद्यालयों   के   विद्यार्थियों   की   व्यावसायिक   रुचियों   एवं   अभिवावकों   के   उनके   सम्बन्ध   में   व्यावसायिक   आकांक्षाओं   के   सम्बन्ध   में   व्यावसायिक   आकांक्षाओं   के   संबंधों   का   अध्ययन ,  एम .  ऐड .  लघु   शोध ,  जोधपुर   विश्वविद्यालय , 1988
8. प्रकाश   लता   पारिवारिक   पृष्टभूमि   और   व्यावसायिक   चयन   के   बीच   सम्बन्ध   का   अध्ययन    एम्   एड .  लघु   शोध ,  राजस्थान   विद्यापीठ ,  डबोक , 1988
9. श्रीवास्तव   श्याम   प्रकाश  -  बांदा   जिले   के   ग्रामीण   एवं   नगरीय   छात्र - छात्रों   की   रुचियों   का   तुलनात्मक   अध्ययन ,  एम .  ऐड   लघु   शोध ,  बुंदेलखंड   विश्वविद्यालय   1998
10. दीक्षित   राघवेंद्र  -  माध्यमिक   स्टार   पर   छात्र   एवं   छात्रों   की   व्यावसायिक   रुचियों   का   तुलनात्मक   अध्ययन   एम्   एड   लघु   शोध   राजस्थान   विश्वविद्यालय , 1998
11. आर्य   बी . एल . ( 2000): ‘‘ शिक्षा   में   तकनीकी   बदलाव ’’:  शिविरा   पत्रिका ,  माशिक्षा   निदेशालय ,  राजस्थान ,  वर्ष  - 40,  अंक - 10,  अपै्रल 
12. बजट  ( 2008) ‘‘ सूचना   एव   प्रसारण   विभाग ,  राजस्थान   सरकार ’’  द्वारा   प्रकाशित   रिपोट 
13. बाबू   सुधाकर   एस . ( 2007): ‘‘ टेक्नालाजीकल   एडवान्सेस   एण्ड   रोल   ऑफ़   आई . सी . टी .  इन   टीचर   ट्रेनिंग   एण्ड   हायर   एज्यूकेशन ’’  यूनिवर्सिटी   न्यूज ;  जुलाई , 01, 45
14. भटनागर ,  जयप्रकाश  ( 1998):   ‘‘ राष्ट्रीय   शिक्षा   नीति ’ 1986   के   परिप्रेक्ष्य   में   उदयपुर   सम्भाग   के   शिक्षण   प्रशिक्षण   महाविद्यालयों   में   नवाचारों   का   अध्ययन ’’,  राजस्थान   में   शिक्षानुसंधान   सम्प्राप्तियाँ   एव   सम्भावनाएँ ,  राजस्थान   शिक्षा   विभाग ,  बीकानेर। 

15. चौहान ,  अमर   सिंह ,  अन्य  ( 1975-88):   ‘‘ राजस्थान   की   डाइट्स   की   शैक्षिक   प्रौद्योगिकी   प्रभाग   की   स्थिति   का   अध्ययन   करना ’’,  राजस्थान   में   शिक्षानुसंधान   सम्प्राप्तियाँ   एवं   सम्भावनाएँ ,  शिक्षा   विभाग ,  राजस्थान ,  बीकानेर।

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