अच्छे मापन उपकरण की विशेषता Qualities of a Good Measuring Tool

अच्छे मापन उपकरण की विशेषता 
Qualities of a Good Measuring Tool 

 कि मापन तथा मूल्यांकन शिक्षा प्रक्रिया का एक अत्यन्त आवश्यक तथा अभिन्न अंग है । शिक्षा प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में छात्रों की विभिन्न योग्यताओं एवं उपलब्धि का मापन व मूल्यांकन करना होता है । मापन तथा मूल्यांकन के लिए कुछ उपकरणों का प्रयोग किया जाता है । किसी भी अच्छे मापन उपकरण में कुछ मूलभूत विशेषताएं का होना अत्यन्त आवश्यक आवश्यक हैं । इसीलिए किसी मापन उपकरण का चयन करते समय इन विशेषताओं का ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है । यदि कोई मापन उपकरण इन विशेषताओं से युक्त होता है तब ही उसे एक अच्छा मापन उपकरण कहा जा सकता है ।

 मापन उपकरण की विशेषताओं को दो भागों - ( i ) व्यावहारिक विशेषताएँ ( Practical characteristics ) ( i ) तकनीकी विशेषताएँ ( Technical characteristics ) में बाँटा जा सकता है । व्यावहारिक विशेषताओं के अन्तर्गत वे विशेषताएँ आती है जो मापन उपकरण के व्यावहारिक उपयोग से सम्बन्धित होती है यदि दिये गये उद्देश्यों तथा दी गई परिस्थितियों में किसी मापन उपकरण को सुगमता व सुविधाजनक ढंग से प्रयोग में लाया जा सकता है तो मापन उपकरण को व्यावहारिक विशेषताओं से युक्त परीक्षण कहते हैं । इनके अन्तर्गत मापन उपकरण की उद्देश्यपूर्णता , व्यापकता , सुगमता , मितव्ययता आदि विशेषताएँ आती हैं । तकनीकी विशेषताओं के अन्तर्गत मापन उपकरण के निर्माण तथा उस पर प्राप्त परिणामों के त्रुटि रहित होने से सम्बन्धित विशेषताएँ आती है । यदि मापन उपकरण की रचना प्रमापीकृत विधियों के अनुरूप की गई है , तो परीक्षण पर प्राप्त परिणामों के त्रुटिरहित होने के प्रति सुनिश्चित हुआ जा सकता है । ऐसी स्थिति में परीक्षण को तकनीकी विशेषताओं से युक्त परीक्षण कहा जाता है इसके अन्तर्गत वस्तुनिष्ठता , विश्वसनीयता , वैधता , विभेदकता आदि विशेषताएँ आती हैं ।
 यहाँ यह स्मरणीय होगा कि परीक्षाण की ये सभी विशेषताएँ एक दूसरे से पूर्णतया पृथक - पृथक न होकर परस्पर सम्बन्धित होती हैं । उदाहरण के लिए यदि कोई परीक्षण वैध होता है तो वह विश्वसनीय भी होता है । इसी प्रकार से बस्तुनिष्ठ परीक्षण की वैधता ब विश्वसनीयता विषयनिष्ठ परीक्षण से अधिक होती है । परीक्षण की विभिन्न विशेषताओं को चित्र  में स्पष्ट किया गया है /

 कुछ लेखक मापन उपकरण की व्यावहारिक विशेषताओं को मात्र एक शीर्षक व्यावहारिकता ( Practicability ) में रखते हैं तथा व्यावहारिक विशेषता व तकनीकी विशेषता नाम से विशेषताओं में कोई विभेद नहीं करते हैं । ऐसे विद्वान तथा लेखक प्रायः किसी अच्छे मापन उपकरण की निम्न प्रमुख विशेषताओं की चर्चा करते हैं : 
( 1 ) वैधता ( Validity ) 
( 2 ) संतुलन ( Balance ) 
( 3 ) सक्षमता ( Efficiency ) 
( 4 ) वस्तुनिष्ठता ( Ojectivity ) 
( 5 ) विशिष्टता ( Specificity )
( 6 ) कठिनता ( Difficulty ) 
( 7 ) विभेदकता ( Discrimination ) 
( 8 ) विश्वसनीयता ( Reliability ) 
( 9 ) न्याययुक्तता ( Fairness ) 
( 10 ) गतिशीलता ( Speededness ) 
( II ) व्यावहारिकता ( Practicability ) 
(12 ) प्रनापीकरण ( Standardization ) 
   आगे किसी अच्छे परीक्षण की इन बारह विशेषताओं ( Characteristics ) का वर्णन संक्षेप में प्रस्तुत किया जा रहा है-


1. वैघता ( Validity ) - परीक्षण की यह विशेषता बताती है कि कोई दिया गया परीक्षण मापन के उद्देश्यों को किस सीमा तक पूरा करता है । यदि कोई परीक्षण मापन के उद्देश्य को पूर्ण करता है तो उस परीक्षण को वैध परीक्षण ( Valid Test ) कहा जाता है तथा परीक्षण की इस विशेषता को वैधता ( Validity ) कहा जाता है । 

2. संतुलन ( Balance ) - परीक्षण की यह विशेषता उसमें सम्मिलित किये गये प्रश्नों से सम्बन्ध रखती है । यदि परीक्षण में सम्मिलित किये गये प्रश्न समस्त पाठ्यवस्तु में ठीक ढंग से वितरित हैं तो परीक्षण को एक संतुलित परीक्षण ( Balance Test ) कहा जाता है । 

3. सक्षमता ( Efficiency ) - परीक्षण का यह गुण परीक्षण की रचना करने में , प्रशासन करने में परीक्षण का अंकन करने में तथा परीक्षार्थी के द्वारा परीक्षण का उत्तर देने में लगे समय से सम्बन्धित होता है । यदि परीक्षण कम समय में तैयार किया जा सकता है , प्रशासित किया जा सकता है , अंकन किया जा सकता है तो परीक्षण को एक सक्षम परीक्षण ( Efficient Test ) कहा जाता है । 

4. वस्तुनिष्ठता ( Objectivity ) - परीक्षण का यह गुण उसके अंकन से सम्बन्धित होता है । यदि परीक्षण में सम्मिलित किये गये प्रश्न स्पष्ट होते हैं तथा उनका एक ही निश्चित उत्तर होता है , तो परीक्षण का अंकन करना सरल तथा त्रुटिरहित होने के साथ साथ परीक्षक की विषयनिष्ठता से मुक्त हो जाता है । ऐसे परीक्षण को वस्तुनिष्ठ परीक्षण ( Objective Test ) कहा जाता है । 

5. विशिष्टता ( Specificity ) - परीक्षण की यह विशेषता बस्तुनिष्ठता की पूरक होती है । यदि परीक्षण इस प्रकार का है कि परीक्षण से अनभिज्ञ छात्र कम अंक पाते हैं तथा अन्य छात्र अधिक अंक पाते हैं तो परीक्षण को विशिष्ट परीक्षण ( Specific Test ) कहा जाता है । 
6. कटिनता ( Difficulty ) - परीक्षण की यह विशेषता परीक्षण में सम्मिलित किये गये प्रश्नों के कठिनाई स्तर से होती है यदि परीक्षण छात्रों की दृष्टि से न तो अत्यधिक कठिन है और न ही अत्यधिक सरल है तो उसे उपयुक्त सरलता बाला प्रश्न कहा जाता है । अत्यधिक सरल या अत्यधिक कठिन परीक्षण ठीक नहीं माने जाते हैं । 

7. विभेदकता ( Discrimination ) - परीक्षण की यह विशेषता उसके द्वारा श्रेष्ठ ब कमजोर छात्रों में ठीक ढंग से अन्तर स्पष्ट करने से सम्बन्धित होती है यदि परीक्षण से प्राप्त प्राप्तांकों का वितरण काफी बड़ा होता है , विशेषकर ऐसे छात्रों के लिये , जो परीक्षण के द्वारा मापी जा रही योग्यता में भिन्न - भिन्न होते हैं , तो परीक्षण को एक विभेदक परीक्षण ( Discrimit . nory Test ) कहा जाता है । 

8. विश्वसनीयता ( Reliability ) - परीक्षण की यह विशेषता परीक्षण से प्राप्त प्राप्तांकों की विश्वसनीयता को बताती है । यदि परीक्षण किसी व्यक्ति को बार - बार एक ही प्राप्तांक प्रदान करता है तो परीक्षण को विश्वसनीय परीक्षण ( Reliable Test ) कहा जाता है । 

9. न्यापयुक्तता ( Fairness ) - परीक्षण की यह विशेषता उसके द्वारा छात्रों को अपनी सही योग्यता के प्रदर्शन करने के अवसरों के प्रदान करने से सम्बन्धित होती है यदि परीक्षण के द्वारा सभी छात्रों को अपनी वास्तविक योग्यता के प्रदर्शन के उपयुक्त तथा समान अवसर प्राप्त होते हैं तो परीक्षण को न्याययुक्त परीक्षण ( Fair Test ) कहा जाता है । 

10. गतिशीलता ( Speededness ) - परीक्षण की यह विशेषता परीक्षण में सम्मिलित किये गये प्रश्नों की संख्या से सम्बन्ध रखती है । यदि परीक्षण में प्रश्नों । संख्या इतनी है कि दिये गये समय में छात्र प्रश्नों को पूरा कर लेते हैं तथा उनके काम करने की गति का कोई अवांछित प्रभाव नहीं पड़ता है तो परीक्षण को उचित परीक्षण माना जाता है । 

11. व्यवहारिकता ( Practicability ) - परीक्षण की यह विशेषता परीक्षण के व्यावहारिक पक्ष से सम्बन्ध रखती है । इसके अन्तर्गत प्रशासन में सुगमता , अंकन में सुगमता , व्याख्या में सुगमता तथा अल्पमूल्य में उपलब्धता जैसे कारक आते हैं । 

12. प्रमापीकरण ( Standardization ) - परीक्षण की यह विशेषता परीक्षण की रचना विधि से सम्बन्धित है । यदि परीक्षण की रचना पद विश्लेषण के आधार पर की गई है तथा परीक्षण के मानक उपलब्ध होते हैं तो परीक्षण को प्रमापीकृत परीक्षण ( Standardized Test ) कहते हैं । मानक ये संदर्भ बिन्दु होते हैं जिनके आधार पर परीक्षण पर प्राप्त अंकों की व्याख्या की जाती है । यदि परीक्षण के लिए मानक उपलब्ध होते हैं तो प्राप्तांकों की व्याख्या करना सरल हो जाता है । 

  वस्तुनिष्ठता , विश्वसनीयता , वैधता तथा मानकों का सम्बन्ध क्रमशः मापन की व्यक्तिगत त्रुटियों , मापन की चर त्रुटियों , मापन की स्थिर श्रुटियों तथा मापन की व्याख्यात्मक त्रुटियों से है । इन चारों विशेषताओं को ही परीक्षण की मुख्य तकनीकी विशेषताओं के रूप में स्वीकार किया जाता है । इसलिए मापन तथा मूल्यांकन के छात्रों के लिए इन चारों विशेषताओं का विस्तृत ज्ञान अति आवश्यक तथा महत्वपूर्ण है अतः इन चारों की विस्तृत चर्चा आगामी चार अध्यायों में प्रस्तुत की जा रही है । अन्य सभी विशेषताएं मुख्यतः परीक्षण के निर्माण से सम्बन्धित हैं जिनकी धर्धा परीक्षा निर्माण के अध्याय के अन्तर्गत की गई है । 

परीक्षण प्राप्तांकों को प्रभावित करने वाले कारक 
( Factors that Influence Test Scores )

    मापे जा रहे गुण के अतिरिक्त अन्य अनेक कारक भी किसी परीक्षार्थी के द्वारा परीक्षण पर प्राप्त अंकों को प्रभावित कर सकते हैं । यही कारण है कि परीक्षण प्राप्तांकों की व्याख्या व उपयोग करने से पूर्व परीक्षण प्राप्तांकों को प्रभावित कर सकने वाले विभिन्न कारकों का ध्यान रखा जाना अत्यन्त आवश्यक है । परीक्षणों पर छात्रों के द्वारा अर्जित अंकों को निम्न अवांछनीय कारक ( Irrelevent factors ) प्रभावित कर सकते हैं :

 ( 1 ) परीक्षण आदत ( Test Habit ) 
( 2 ) चिन्ता ( Anxiety ) 
( 3 ) अभिप्रेरणा ( Motivation ) 
( 4 ) प्रतिक्रिया शैली ( Response Styles ) 
( 5 ) प्रशासन का ढंग ( Mode of Administration ) 
( 6 ) परीक्षक ( Examiner ) 
( 7 ) पूर्व सूचना ( Pre - announcement ) 
( 8 ) अंकन ( Scoring ) 
( 9 ) व्यवधान ( Disturbance ) 
( 10 ) सांस्कृतिक पृष्ठभूमि ( Cultural Background ) 

परीक्षण आदत ( Test Habit ) - परीक्षण देने के सम्बन्ध में पूर्व जानकारी तथा पूर्व अभ्यास किसी छात्र के द्वारा प्राप्त अंकों को प्रभावित कर सकती है । जो छात्र परीक्षण देते रहते हैं उनके प्राप्तांक प्राय : अधिक आते हैं जबकि परीक्षण देने के अनुभव से विहीन व्यक्ति प्रायः अपनी वास्तविक योग्यता से कम अंक प्राप्त करते हैं । परीक्षण देने के अभ्यास ( Test Practice ) , परीक्षण आदत ( Test Habit ) , तथा परीक्षण प्रशिक्षण ( Test Coaching ) से छात्रों में परीक्षण विवेक ( Test Wiseness ) बढ़ जाता है । परिणामतः वे परीक्षण को अधिक अच्छे ढंग से देते हैं तथा अधिक अंक प्राप्त करने में सफल रहते हैं | 

चिन्ता ( Anxiety ) - परीक्षार्थी की मनोस्थिति का उसके ऊपर काफी प्रभाव पड़ता है । परीक्षण अथवा परिणामों के प्रति चिन्तित व्यक्ति परीक्षण के प्रश्नों को ठीक प्रकार से व मनोयोग से हल नहीं कर पाता है । चिन्तित , आकुल अथवा उद्विग्न व्यक्ति के परीक्षण प्राप्तांक प्रायः उसकी वास्तविक योग्यता से कम प्राप्त होते हैं । इसके विपरीत चिन्तामुक्त परीक्षार्थी पूर्ण मनोयोग से परीक्षण के प्रश्नों को हल करता है तथा फलस्वरूप अच्छे अंक प्राप्त करता है । 

अभिप्रेरणा ( Motivation ) - अभिप्रेरणा भी परिक्षण के प्राप्तांकों को प्रभावित करती है । अभिप्रेरित छात्र परीक्षण को अपने अधिकतम प्रयास से हल करते हैं , जबकि अल्प अभिप्रेरित छात्र निराशा वातावरण में अपने पूर्ण प्रयास , लगन व मेहनत से परीक्षण को नहीं देते है । यही कारण है कि अभिप्रेरित छात्र अधिक अंक प्राप्त करते हैं जबकि कम अभिप्रेरित छात्र कम अंक ही प्राप्त कर पाते हैं यहाँ यह स्मरणीय है कि बाह्य प्रोत्साहन ( Extrinsic Incentives ) जैसे उपहार , आदि की अपेक्षा आन्तरिक प्रोत्साहन ( Inrtinsic Incentives ) जैसे प्रशंसा आदि का अधिक महत्त्व होता है । 

प्रतिक्रिया शैली ( Response Styles ) - प्रतिक्रिया शैली से तात्पर्य परीक्षण पर किसी विशिष्ट प्रकार के उत्तरों को अधिक देने से है । प्रतिक्रिया शैली के अन्तर के कारण समान योग्यता वाले छात्र विभिन्न अंक प्राप्त कर सकते हैं । कुछ छात्र तीव्र गति से प्रश्नों को हल करना पसन्द करते हैं जबकि कुछ छात्र परिशुद्धता पर अधिक ध्यान देते हैं । इसे गति व परिशुद्धता शैली ( Speetl vs Accuracy style ) कहते हैं । सहमति शैली ( Acquiescence Style ) में परीक्षार्थी विना सही हल जाने भी सही हल का चयन करने में प्रायः सफल हो जाता है । कुछ छात्रों में कठिन प्रश्नों में लम्थे उत्तर को छाँटने की प्रवृति ( Option Length Tendency ) होती है जबकि कुष्ठ छात्रों में किनी विशिष्ट स्थिति बाले उत्तरों का चयन करने की प्रवृत्ति ( Positional Preference Tendency ) पाई जाती है । कुछ छात्रों में अनुमान से ही उत्तर छाँटने ( Set to Gamble ) की प्रवृत्ति होती है । इन सभी प्रवृत्तियों के कारण छात्रों के प्राप्तांक कभी कभी उनकी वास्तविक योग्यता से कम या अधिक प्राप्त होते हैं । 

प्रशासन का ढंग ( Administration Mode ) - परीक्षण को प्रशासित करने का ढंग भी छात्रों के प्राप्तांकों को प्रभावित कर सकता है । परीक्षाण प्रशासक ( Ten Administrator ) के द्वारा प्रयोज्यों को निर्देश किस प्रकार से दिये गये हैं , परीक्षण के कक्ष का माहौल तथा परीक्षार्थी का आसन ( Seat ) कैसा है जैसे कारक भी परीक्षार्थी के द्वारा प्राप्त अंकों को प्रभाषित कर देते हैं । भली भाँति ढंग से निर्देशन दिये जाने पर अथवा शान्त माहौल न होने पर अथवा उपयुक्त आसन न होने के कारण प्रायः प्राप्तांक कम हो जाते हैं ।


परीक्षक ( Examiner ) - परीक्षक की प्रकृति व व्यवहार का भी परीक्षाण प्राप्तांकों पर प्रभाव पड़ सकता है । प्रशिक्षित , सहानुभूतिपूर्ण , विनय , सहयोगी परीक्षक के द्वारा छात्रों को अपनी सर्वोत्तम योग्यता को ठीक प्रकार से प्रदर्शित करने का अवसर प्रायः मिलता है । इसके विपरीत , अप्रशिक्षित , अनुभवहीन खीझा परीक्षक परीक्षण प्रशासन के निर्देशों का ठीक ढंग से पालन नहीं करता है निर्धारित समय में कम या अधिक समय प्रदान करना तथा निर्देशों को गलत ढंग से देना जैसे कारकों से परीक्षण प्राप्तांक दुरी तरह से प्रभावित हो सकते हैं । 

पूर्व सूचना ( Pre - announcement ) - परीक्षण कब लिया जायेगा , इसकी पूर्व सूचना भी परीक्षण पर छात्रों के प्राप्तांकों को प्रभावित करती है । पहले से सूचित परीक्षण पर विना पूर्वसूचना दिये परीक्षण की तुलना में प्रायः अधिक अंक प्राप्त होते हैं । अंकन ( Scoring ) - अंकन करते समय हुई त्रुटियों के कारण भी परीक्षण प्राप्तांक प्रभावित हो जाते हैं । अंकन निर्देशों का ठीक ढंग से पालन न करना , लापरवाही से अंकन कार्य करना तथा जोड़ने में गलती करना कुछ ऐसे कारक हैं जिनके कारण छात्रों के अंक कम या अधिक हो सकते हैं |

व्यवघान ( Disturbance ) - परीक्षण देते समय अनायास हुए व्यवधानों के कारण भी छात्रों के प्राप्तांक प्रभावित हो जाते हैं । परीक्षण देते समय शोर का होना , प्रकाश का कम होना , डेस्क का ठीक न होना , गर्मी या सर्दी का प्रकोप होना , उड़न दस्ते के द्वारा तलाशी का लेना आदि कारणों से परीक्षार्थियों को अपना कार्य पूरा करने में व्यवधान हो जाता है ।

सांस्कृतिक पृष्ठभूमि ( Cultural Background ) - छात्रों का पारम्परिक , सामाजिक , व सांस्कृतिक वातावरण भी उसकी परीक्षण सफलता को प्रभावित करता है । यदि परीक्षण की पाठ्यवस्तु उसके परिवेश से मिलती है । तो वह अधिक अंक प्राप्त कर सकता है जबकि यदि परीक्षण की पाठ्यवस्तु उसके परिवेश के अनुकूल नहीं होती है तब वह परीक्षण पर कम अंक ही प्राप्त कर पाता है । 

      सारांश 
( Summary ) 

मापन उपकरणों की विशेषताओं को दो मुख्य भागों - व्यावहारिक विशेषताएं तथा तकनीकी विशेषताएँ में बाँटा जा सकता है । व्यावहारिक विशेषताओं के अन्तर्गत उद्देश्यपूर्णता , सुगमता , मितव्ययता , व्यापकता व प्रतिनिधित्वता आती है जबकि तकनीकी विशेषताओं में वस्तुनिष्ठता , विभेदकता , वैधता , विश्वसनीयता व मानक आते हैं । 

        कुछ लेखकों के अनुसार अच्छे मापन उपकरणों में बारह विशेषताएँ होनी चाहिए । ये बारह विशेषताएं क्रमशः - वैधता , सन्तुलन राक्षमता , वस्तुनिष्ठता , विशिष्टता , कठिनता , विभेदकता , विश्वसनीयता , न्याययुक्तता , गतिशीलता , व्यावहारिकता , तथा प्रमापीकरण हैं । इनमें से वस्तुनिष्ठता , विश्वसनीयता , वैधता तथा मानकों को किसी परीक्षण की मुख्य विशेषताएं माना जाता है । इन चारों की विशद चर्चा आगामी अध्यायों में  हैं ।

     छात्रों के द्वारा परीक्षण पर प्राप्त अंक अनेक कारकों से प्रभावित हो सकते हैं । कुछ प्रमुख कारण - परीक्षण आदत , चिन्ता , अभिप्रेरणा , प्रतिक्रिया शैली , प्रशासन विधि , परीक्षक , पूर्वसूचना , अंकन , व्यवधान तथा सांस्कृतिक पृष्ठभूमि हैं ।

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